मंदिर परिचय

क्षेत्र के प्रारंभिक विकास के क्रम में प्रथम बार सन 1960 में पंडित नीरज जैन सतना के निर्देशन में प्रांतीय जैन समाज के सहयोग से भोंयरे का जीर्णोद्धार किया गया। प्रतिष्ठाचार्य पंडित गुलाब चंद पुष्प एवं आंचलिक समाज के सक्रिय सहयोग से वर्ष 1985 में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं गजरथ महोत्सव के सफल आयोजन के फलस्वरूप शिखर सहित मूलनायक मंदिर बाहुबली जिनालय एवं धर्मशाला का निर्माण कार्य संपन्न हुआ।

ब्रह्मचारी जय कुमार निशांत भैया जी के निर्देशन में क्षेत्र को नवीन स्वरूप प्रदान कराते हुए वास्तु एवं शिल्प कला के अनुरूप किए गए सुंदरीकरण से आज नवागढ़ क्षेत्र जन जन की आस्था का केंद्र बन चुका है । भक्तगण यहां आकर विधान एवं जप अनुष्ठान करके अपनी समस्याओं का निदान पाकर भगवान अरनाथ स्वामी के प्रति समर्पित हो जाते हैं।

मान स्तम्भ

उत्कृष्ट साधकों एवं त्यागी व्रती श्रावक-श्राविकाओं के लिए व्रती आश्रम का शुभारंभ अरनाथ भगवान के गर्भ कल्याणक फाल्गुन शुक्ल तृतीया 17 फरवरी 2009 ईसवीं को हुआ था।

मूल नायक वेदी

वहां टीले के ऊपर विशालकाय इमली के पेड़ के नीचे बहुत सी खंडित जैन मूर्तियों , झाड़ियों के झुरमुट एवं पत्थरों का ढेर देखा। एक ग्रामीण वहां नारियल फोड़कर मनौती मांग रहा था। उससे चर्चा करने पर उसने बताया कि यह देवस्थान है, यहां हम अपनी समस्त विपदाओं का निराकरण नारियल फोड़कर करते हैं । यहां की धूल भी यदि हम रोगी को लगा दें तो वह स्वस्थ हो जाता है।

प्रथम वेदी

भारत वर्ष के लगभग सभी प्रदेशों में सैकड़ों गजरथ एवं पंचकल्याणक प्रतिष्ठा को सफलतम एवं प्रभावना पूर्वक संपन्न कराते हुए प्रतिष्ठा पितामह पंडित श्री गुलाब चंद जी पुष्प.

दुतीय वेदी

नवागढ़ में खनन से प्राप्त मध्यकालीन 8 फुट उत्तुंग भगवान आदिनाथ, 15 फुट उत्तुंग भगवान शांतिनाथ, पद्मासन भगवान पार्श्वनाथ, विशाल तोरण एवं कई अति विशिष्ट शिल्पों के साथ लगभग 200 कलाकृतियां क्षेत्र की यशोगाथा की साक्षी हैं । विशाल संग्रहालय 'बुंदेली विरासत' की योजना समाज के सहयोग से क्रियान्वित होना है।

त्रतीय वेदी

नवागढ़ के बीहड़ में नैसर्गिक प्राचीन शैलाश्रय एवं गुफाएं हैं जिनमें सन 1961 ईस्वी में मुनि श्री आदि सागर जी महाराज बम्होरी वालों ने साधना की थी।

चतुर्थ वेदी

विगत कई वर्षों से मेला के समय क्षेत्र के कुए में अभिषेक करने लायक जल ही रहता है ।

पंचम वेदी

नवागढ़ में खनन से प्राप्त मध्यकालीन 8 फुट उत्तुंग भगवान आदिनाथ, 15 फुट उत्तुंग भगवान शांतिनाथ, पद्मासन भगवान पार्श्वनाथ, विशाल तोरण एवं कई अति विशिष्ट शिल्पों के साथ लगभग 200 कलाकृतियां क्षेत्र की यशोगाथा की साक्षी हैं ।