पुराविदों की दृष्टि में नवागढ़ . . .

डॉ . स्नेहरानी जैन सागर एवं इंजी . एस . एम . जैन सोनीपत - नवागढ़ की चट्टानें एवं गुफाएँ ज्वालामुखी के लाये से निर्मित हैं , जो लाखों वर्ष प्राचीन हैं , जो जैन धर्म की पुरातन परम्परा को सिद्ध करते हैं।

प्रो . गिरिराज कुमार , दयालबाग एजू . इंस्टी . आगरा - नवागढ़ में अन्येषित कुदाल दो लाख से पाँच लाख वर्ष प्राचीन पाषाण कालीन मानव सभ्यता का साक्ष्य है । सिद्धों की दौरिया का रॉक कप मार्क 10 हजार वर्ष प्राचीन मानव सभ्यता का साक्ष्य है ।

डॉ . एस . के . दबे , झांसी एवं श्री नरेश पाठक, ग्वालियर - नवागढ़ में अन्वेषित पाषाण उपकरण एवं लघु पाषाण औजार 12 से 15 हजार वर्ष प्राचीन मध्य पाषाणकालीन सभ्यता का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं ।

डॉ नारायण व्यास , भोपाल - नवागढ़ में ब्र , जय कुमार जैन ' निशाांत ' द्वारा अन्वेषित कच्छप शिला की ‘ चितेरों की चंगेर ' शैलचित्र की श्रृंखलाएँ 6 से 8 हजार वर्ष पूर्व की विकसित मानव सभ्यता के साक्ष्य हैं ।

डॉ ए . पी . गौड़ , लखनऊ - नवागढ़ में ब्र . जय कुमार जैन 'निशाांत' द्वारा अन्वेषित मिट्टी एवं पाषाण के मनके नवागढ़ में 2 हजार वर्ष से लगातार मानवीय सभ्यता के साक्ष्य हैं । नवागढ़ सरपंच श्री रामनारायण यादव द्वारा फाईटोन पहाड़ी की गुफा में अन्वेषित उत्कीर्ण कायोत्सर्ग मुद्रा लगभग 2500 वर्ष से संत साधना की साक्ष्य हैं ।

डॉ के . पी . त्रिपाठी , टीकमगढ़ - बुन्देलखण्ड का वृहद् इतिहास में उल्लेख करते हैं मदनपुर के अभिलेख अनुसार सन् । 1182 ई . ( संवत् 1239 ) में चंदेल शासक परमर्दिदेव से युद्ध करते हुये पृथ्वीराज चौहान ने महोबा , लासपुर , मदनपुर के साथ नवागढ़ को भी ध्वस्त किया था , जिसके साक्ष्य यहाँ के संग्रहालय में संग्रहीत विशालकाय शताधिक खंडित तीर्थकर प्रतिमाएं हैं ।

डॉ एन . एम . पी . तिवारी , वाराणसी - नवागढ़ संग्रहालय में संग्रहीत सन् 1066 ई . ( संघत 1123 ) का आदिनाथ नीशंकर का पद्मासन यादित आसन अत्यंत महत्वपूर्ण है । नवागढ़ गुफा से प्राप्त अंत्री पाहिल की प्रशस्ति से सिद्ध होता है कि चंदेल । शासक पंगदेव सन् 954 ई . ( संयत् 1011 ) के शासनकाल में राज्य सम्मान प्राप्त पाहिल श्रेष्ठी ने मुनि बासवांद के काल में खजुराहो में जैन मंदिर निर्माण के साथ नदपुर वर्तमान नयागढ़ में भी जैन मंदिर का निर्माण कराया होगा । | पाहिल के पौत्र महिचंद प्रपौत्र देहा ने सन 1138 ई . ( संवत् 1195 ) में तीर्थंकर महावीर की स्थापना कराई थी ।

डॉ कस्तूरचन्द्र 'सुमन', दमोह - नदपुर वर्तमान नवागढ़ महत्वपूर्ण एवं समृद्धशाली जैन तीर्थ क्षेत्र रहा होगा , इसीलिये सिद्ध क्षेत्र अहार जी के मूलनायक शांतिनाथ तीर्थकर सन् 118 ) ई . ( संवत् 1237 ) की प्रशस्ति तथा अतिशय क्षेत्र पपौरा जी के भयरा मंदिर क्र . 23 की तीर्थक प्रतिमा सन् 1145 ई . ( संवत् 1202 ) की प्रशस्ति में इसका नामोल्लेख प्राप्त होता है ।

डॉ . भागचन्द्र 'भागेन्दु', दमोह - मटकाटोर शिला , कच्छप शिला , बगाज टोरिया की गुफा , फाईटोन पहाड़ी की गुफाएँ । यहाँ जैन संतों की हजारों वर्ष प्राचीन साधना स्थली एवं गुरुकुल परम्परा को प्रमाणित करती हैं । जिसके साक्ष्य गुफा में उत्कीर्ण कायोत्सर्ग मुद्रा एवं चरण चिह्न ( रॉक कट इमेज ) तथा बगाज टोरिया की प्राकृतिक आचार्य गुफा है ।

श्री हरिविष्णु अवस्थी , टीकमगढ़ - नवागढ़ ( नंदपुर ) में संग्रहीत प्रतिहारकालीन शिल्प ( सन 825 ई . ) शिग्नुर कलश , खंडित तीर्थंकर बिम्ब , नवागढ़ के 5 किमी . विस्तार एवं ऐतिहासिक साक्ष्यानुसार यह प्रमाणित होता है कि नवागढ़ प्रतिहार राजाओं द्वारा स्थापित महानगर था । जिसे यहाँ संग्रहालय में संग्रहीत विशेष मुकुट वाले कई शीर्ष , राजसत्ता सम्पन्न गौरवमयी राजधानी होने का संकेत करते हैं ।